घरेलू हिंसा
और जुल्म नहीं सहना है
मुझको भी कुछ कहना है
प्रेम के रिश्ते में आई दरार
तो मैंने भी कर लिया दरकिनार
दम घुटने लगा जीना हुआ दुश्वार
अब मुझे चुप नहीं रहना है
और जुल्म नहीं सहना है
मुझको भी कुछ कहना है
स्त्री पर जो हाथ उठाएंु
वह पुरुष नहीं है कायर है
मैंने भी संकल्प कर लिया
डटकर सामना करना है
और जुल्म नहीं सहना है
मुझको भी कुछ कहना है
बहुत हो चुका मेरा अपमान
जिंदगी बन गई श्मशान
दानव रूपी मानव से
अब और नहीं मुझे डरना है
और जुल्म नहीं सहना है तय
मुझको भी कुछ कहना है
अन्याय के खिलाफ आवाज उठा कर
धंनया आयाम बनाना है
अपने पैरों पर खड़ी होकर
स्वावलंबी बन जाना है
और जुल्म नहीं सहना है
मुझको भी कुछ कहना है रथ थे
गुलामों जैसी जिंदगी का
खुल कर विरोध कर जाना है
महिलाओं की ताकत बन कर
घरेलू हिंसा को मिटाना है
और जुल्म नहीं सहना है
मुझको भी कुछ कहना है
सीमा त्रिपाठी लालगंज प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश