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मध्य प्रदेश

प्रभु महावीर ने ऐसा प्रबल पुरुषार्थ किया कि वे सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो गए गणिवर्यश्री कल्याण रत्नविजयजी ने श्री वर्धमान स्थानक भवन में धर्मसभा में कहा

 

बखतगढ़ सुदर्शन टुडे मिडिया प्रभारी अनोखी शेरा पाटीदार

बखतगढ़। क्रोध एक पागलपन है, जिससे आत्मा जल जाती है। व्यक्ति स्वयं के कार्य के कारण स्वयं ही दुखी होता है। क्रोध रिश्ता तोड़ देता है और यह पाप की ओर ले जाता है। व्यक्ति को सही दिशा में जाने के लिए पुरुषार्थ करना चाहिए। व्यक्ति का दिमाग सेट है तो वह अपसेट कभी नहीं होगा। संसार में कोई भी उत्कृष्ट कार्य करने से प्रसिद्ध जरूर होता है, लेकिन सिद्ध होने के लिए प्रबल पुरुषार्थ करना पड़ता है। जैसे प्रभु महावीर ने कई परिषय आने के बाद भी समता भाव से सहन करते हुए ऐसा प्रबल पुरुषार्थ किया कि वे सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो गए। ये प्रेरणादायी विचार आचार्यश्री तपोरत्न सुरिश्वरजी के आज्ञानुवर्ती जैन संत गणिवर्य श्री कल्याण रत्नविजयजी ने श्री वर्धमान स्थानक भवन बखतगढ़ में धर्मसभा में व्यक्त किए।

जैन संतो का हुआ मंगल पदार्पण

बखतगढ़ में गणिवर्य श्रीजी सहित 53 संत एवं 25 साध्वी भगवंत सहित 78 संयमी आत्माओं का 6 अप्रैल को मंगल प्रवेश हुआ। इसमें दो छोटे छोटे बाल संत है जिन्हे देखकर लगता है कि वास्तव में धर्म एवं संयम के साथ मोक्ष पाने की कितनी उत्सुकता है। शेष 13 से 17 एवं इससे अधिक उम्र के संत है। साथ में 6 बालक मुमुक्षु एवं 19 बालिका मुमुक्षु भी है। जो गुरुवर के सानिध्य में अपने ज्ञान में अभिवृद्धि कर रहे है।

कषाय नहीं करने से आंतरिक संतुष्टि मिलती है

गणिवर्यश्रीजी ने धर्मसभा में आगे कहा कि व्यक्ति को दर्जनों से दूर और सज्जनों के नजदीक रहना चाहिए। फिर भी दुर्जनों को भी सज्जन बनाने का प्रयास अवश्य करना चाहिए। प्रत्येक जीव का एक मात्र लक्ष्य रहता है कि उसे मोक्ष प्राप्त हो। लेकिन मोक्ष को पाना है तो कषायों को जितना पड़ेगा। जिसने कषाय को जीत लिया वह नरक में नहीं जाता है और जो कषाय नहीं करते हैं उन्हें आंतरिक संतुष्टि मिलती है।

आत्म विश्वास को टूटने न दे

सामने वाले व्यक्ति के स्वभाव के साथ अपना स्वभाव सेट कर लेंगे तो हमें क्रोध नहीं आएगा। आत्म विश्वास के साथ क्रोध को जीतने का अभ्यास करना चाहिए। उस अभ्यास को निरंतर करने के साथ लंबे समय तक करते रहना चाहिए। यदि हमारा अभ्यास निरंतर लंबे समय तक रहा तो क्रोध पर विजय पाने में देर नहीं लगेगी। सबसे पावरफुल मन है। क्रोध के सामने यदि हमारा आत्म विश्वास टूट जाए तो वह सबसे बड़ा हमारा नुकसान है। इसलिए आत्म विश्वास को टूटने नहीं दे।

बड़ों का अविनय कभी नहीं करना चाहिए

माता ने जन्म दिया और पिता ने पढ़ा लिखा कर योग्य बनाया। इसलिए इन दोनों के साथ किसी भी बड़ों का अविनय नहीं करना चाहिए। जिसने क्रोध एवं मान कषाय पर विजय प्राप्त कर ली तो माया एवं लोभ पर तो स्वतः ही जय पाई जा सकती है। इसके बाद जीव को केवल ज्ञान हो जाएगा और शीघ्र ही मोक्ष मिल जाएगा।

मांडवगढ़ में होगी ओलीजी तपाराधना

गौरतलब है कि प्रसिद्ध तीर्थ एवं पर्यटक स्थल मांडू में गणिवर्यश्रीजी सहित 53 संत एवं 25 साध्वी भगवंत के सानिध्य में चैत्र सुदी सप्तमी 15 अप्रैल से ओलीजी की तपाराधना होगी। जिसमें बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाएं आराधना का लाभ लेंगे।

चौके की व्यवस्था अनुमोदननीय

मुंबई के श्रावक उमेद भाई जो संत भगवंत के साथ चल रहे है एवं मार्ग में जिस गांव में भी संतों का रुकना होता है। वहां मुमुक्षुओं आदि के नवकारसी, भोजन, चौवीहार आदि की चौके के माध्यम से उत्कृष्ट, अनुकरणीय व्यवस्था की जा रही है। जिनकी सभी ने लाभार्थी की खूब अनुमोदना की।

गुरु भगवंतों का होगा विहार

गुरु भगवंतों का 7 अप्रैल को प्रातः बखतगढ़ से कोद के लिए विहार होगा। इसमें विहार सेवा अनमोल सेवा का लाभ अवश्य लेवे।
संलग्न फोटो :
बखतगढ़ 06 अप्रैल 01
बखतगढ़ में 78 संत सतीजी भगवंत एवं 25 बालक बालिका मुमुक्षुओं का हुआ मंगल पदार्पण।
बखतगढ़ 06 अप्रैल 02
बखतगढ़ में मंगल प्रवेश के दौरान नन्हे नन्हे कदम रखते हुए बाल संत।
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आचार्यश्री उमेशमुनिजी की 12 वीं पुण्यतिथि विभिन्न तपाराधना से मनाई

ज्ञानाभिवृद्धि के लिए ओपन बुक परीक्षा भी हुई

बखतगढ़। अनंत उपकारी जिनशासन गौरव आचार्यश्री उमेशमुनिजी की 12 वीं पुण्यतिथि एवं धर्मदास गणनायक प्रवर्तकश्री जिनेंद्रमुनिजी के 65 वें जन्म दिवस प्रसंग पर पांच दिवसीय आराधना आयोजन के अंतर्गत बखतगढ़ में पांच दिन तक प्रतिदिन निर्धारित समय दोपहर 2 से 3 बजे तक एक घंटे नवकार महामंत्र के सामूहिक जाप का आयोजन हुआ। इसमें एक स्वर में महामंत्र की स्तुति कर गुरु गुणगान, उमेश चालीसा, जिनेंद्र चालीसा आदि स्तुति की। जाप के बाद मांगलिक भी श्रवण करवाई गई। पांचों दिन पृथक पृथक श्रावकों द्वारा प्रभावना वितरित की गई। पांच दिवसीय आराधना के अंतिम दिन आचार्यश्री की पुण्यतिथि प्रसंग पर अपनी शक्ति अनुसार आराधकों ने तप, त्याग, तपस्या, धर्म, ध्यान, ज्ञान आराधना की। श्रावक, श्राविकाओं ने उपवास, एकासन, बियासन आदि तपाराधना कर आचार्यश्री को तप रूपी भेंट दी।

ज्ञानाभिवृद्धि के लिए ओपन बुक परीक्षा हुई

इस अवसर पर तत्वज्ञश्री धर्मेंद्रमुनिजी द्वारा रचित साहित्य “मैं, यह और वह” पर आधारित ओपन बुक परीक्षा का आयोजन मध्यप्रदेश सहित गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि प्रांतों में अखिल भारतीय श्री चंदना श्राविका संगठन के तत्वावधान में हुआ। इसी के अंतर्गत यह परीक्षा सभी स्थानों के साथ बखतगढ़ के श्री वर्धमान स्थानक भवन में भी एक ही दिन एक ही निर्धारित समय पर आयोजित हुई। इसमें श्राविकाओं ने उत्साहपूर्वक भाग लेकर अपने ज्ञान में अभिवृद्धि की।

परीक्षा में विशेष आकर्षण ने परीक्षार्थियों को उत्साहित किया

प्रायः परीक्षार्थियों को प्रश्न पत्र मिलते है और उन प्रश्नों के उत्तर वह अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखते है और सही उत्तर के आधार पर अंक भी मिलते है। लेकिन इस बार परीक्षा का विशेष आकर्षण यह रहा कि परीक्षार्थियों की ज्ञान जिज्ञासा को भी शामिल किया गया। जिसने सभी को उत्साहित कर दिया। इसके तहत उत्तर पुस्तिका में परीक्षार्थियों द्वारा धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, राष्ट्रीय, आगम, प्रतिक्रमण, प्रार्थना, धार्मिक पुस्तक, स्तवन, भजन, चौवीसी, दिनभर की वार्तालाप आदि से संबंधित हो या साहित्य मैं, यह और वह में भी कोई प्रश्न जिज्ञासा के रूप में उद्वेलित हो रहा तो उनमें में से कोई भी तीन प्रश्न पूछने के लिए भी परीक्षा आयोजक ने परीक्षार्थियों की परीक्षा में शामिल किया है। पूछे गए प्रश्नों के उत्तर तत्वज्ञश्री धर्मेंद्रमुनिजी से मिलेगें।

प्रश्न नहीं पूछे तो माइनस मार्किंग

यदि किसी परीक्षार्थी ने तीन प्रश्न नहीं पूछे तो नियमावली अनुसार उसके प्राप्तांकों में अंक कम कर दिए जाएंगे। उक्त ज्ञान जिज्ञासा को बढ़ावा देने के लिए इस आकर्षण के प्रयोग से सभी अत्यंत ही प्रफुल्लित हुए। गौरतलब है कि अपने चिंतन से पूछे गए जिज्ञासा रूप में प्रश्न स्वयं के ज्ञान में अभिवृद्धि करने के साथ कभी भी किसी भी संयमी आत्माओं से जिज्ञासा रूप में प्रश्न पूछने में संकोच नहीं होगा।

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