गोवर्धन। परिक्रमा मार्ग तलहटी के गिर्राज धाम आश्रम में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में व्यास गौर दास महाराज ने कहा कि कलियुग में भागवत कथा साक्षात श्रीहरि का स्वरूप है। इसका ज्ञान सनातन है। इसी ज्ञान से हम संसार रूपी भवसागर को पार कर सकते हैं। उन्होंने ब्रज में राधा नाम भाव की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि जैसे यह पृथ्वी सप्त सिंधुवती है, पृथ्वी पर सात सागर हैं, ऐसे ही उन आनंदमय ब्रहम की अल्हादिनी शक्ति परमात्मा की भी आत्मा बृषभानु नंदनी, कुंजेश्वरी राजरासेश्वरी श्रीराधिका भी सप्तसिंधुवती है। पृथ्वी के सागर खारे जल से भरे हुए हैं किन्तु राधा अत्यंत दिव्य चिन्मय सप्तसागरों से सिंधुवती हैं। राधा जी के अनुराग रस का वर्णन स्वयं श्रीप्रबोधानंद सरस्वती द्वारा रचित श्रीराधारससुधानिधि के 272 श्लोंको में समाहित है। राधाजी वात्सल्य भाव की सिंधु हैं। राधारससुधानिधि पिपासु भक्तों को श्रीराधाप्रेमसिंधु के बिंदु का अनुभव कराने वाला है। यह समस्त रसिक जनों को कृतज्ञ करने वाला है। यह ग्रंथ प्रिया-प्रियतम की लीलाओं का ज्ञान कराने का साधन है। आचार्यगणों ने अपने दिव्य चित्त से भगवान की लीलाओं का अनुभव किया तो अपनी वाणी व ग्रंथों से हमें उसे प्रदान कर दिया है। साक्षात गिरिराज महाराज की तलहटी में भागवत श्रवण करने का सौभाग्य बड़े पुण्य कर्मों से मिलता है। इस अवसर पर मुख्य सेवक जतिन दास, नवल किशोर दास, सुनील दास, मुख्य यजमान माधवी दास, मनोहरी, मोहनी दासी आदि थे।