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दशा माता की पूजा का महत्व पीपल के पेड़ के छांव में किया जाता है और पीपल के आसपास धागा बांधा जाता है और फिर कथा सुनी जाती हैं

 

बखतगढ़ सुदर्शन टुडे मिडिया प्रभारी अनोखी शेरा पाटीदार

चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को दशा माता की पूजा अर्चना की जाती है पूजन करने के बाद महिलाएं घरों पर हल्दी और कुमकुम के छापे लगाती है व्रत करने वाली महिलाएं एक ही समय भोजन करती हैं लेकिन उस भोजन में नमक का प्रयोग नहीं किया जाता धार्मिक मान्यता है की दशा माता की पूजा अर्चना और व्रत करने से घर की दिशा और दशा से सुधार आता है और दरिद्रता का अंत होता है इस दिन महिला के कच्चे सूत का दस तार का डोरा बनाकर उसमें दस गठाने लगाती हैं ओर फिर उसे लेकर पीपल के वृक्ष की पूजा अर्चना करती हैं इस व्रत में डोरा का विशेष महत्व होता है क्योंकि यह दशा माता का डोरा कहलाता है जिसे महिला साल भर तक गले में धारण करती हैं मान्यता है कि ऐसा करने से सभी परेशानी से मुक्ति मिलती है और घर के सदस्यों की उन्नति होती हैं लेकिन अगर आप साल भर तक इसको धारण नहीं कर सकते तो वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष में कोई भी अच्छा दिन देखकर माता के चरणों में अर्पित कर सकते हैं इस व्रत में साफ सफाई का ध्यान रखना पड़ता है घरेलू सामान व झाड़ू खरीदने का विशेष महत्व होता है पौराणिक ग्रंथों के अनुसार यह व्रत सभी तरह की परेशानियों से बचाता है

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