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यह महोत्सव शिवरात्रि के अवसर पर शुरू हो रहा है, इसलिए इसको नोहलेश्वर महादेव महोत्सव का नाम दिया गया-संस्कृति राज्य मंत्री धर्मेंद्र सिंह लोधी

संवाददाता रानू जावेद खान
जवेरा दमोह

शिवरात्रि के अवसर पर शुरू हो रहा है, इसलिए इसको नोहलेश्वर महादेव महोत्सव का नाम दिया गया। लबें समय से मांग चल रही थी कि नोहटा में नोहलेश्वर महोत्सव फिर से शुरू होना चाहिए, यह शिवरात्रि के अवसर पर शुरू हो रहा है, इसलिए इसको नोहलेश्वर महादेव महोत्सव का नाम दिया गया है। यह बहुत ही प्रसन्नता का विषय है कि संस्कृति विभाग द्वारा यह कार्यक्रम शुरू किया गया है और आने वाले समय में यह कार्यक्रम और भी दिव्य और भव्य होगा। इस आशय के विचार प्रदेश के संस्कृति, पर्यटन, धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री धर्मेंद्र सिंह लोधी ने नोहटा में आयोजित नोहलेश्वर महादेव महोत्सव का शुभारंभ करते हुए व्यक्त किये।

इस अवसर पर उन्होंने नोहटा महादेव महोत्सव को संस्कृति विभाग के कैलेंडर में जोड़ने एवं हर साल कार्यक्रम आयोजित करने की घोषणा की। कार्यक्रम के दौरान संस्कृति राज्य मंत्री सहित अन्य अतिथियों ने सहायक संचालक शिक्षा नन्हें सिंह द्वारा लिखित पुस्तक मेरा बचपन मेरा गांव एवं लहजे बदल रहे हैं, पुस्तकों का विमोचन किया। इस मौके पर वेयर हाउस लॉजिस्टिक्स एवं कॉरपोरेशन के पूर्व अध्यक्ष राहुल सिंह लोधी, कलेक्टर मयंक अग्रवाल, पुलिस अधीक्षक सुनील तिवारी, भाव सिंह मासाब, जिला पंचायत सदस्य धर्मेंद्र पटेल, रूपेश सेन, उजियार सिंह, संस्कृति संचालक श्री एन पी नामदेव मंचासीन थे। संस्कृति राज्य मंत्री लोधी ने कहा यह अभी शुरुआत है, अगले सत्र में इस कार्यक्रम को और भव्यता प्रदान की जाएगी। यह कार्यक्रम नोहटा की विरासत है, इस विरासत को बढ़ाने, संरक्षित करने के लिए, यादगार बनाने के लिए इस कार्यक्रम को अगले सत्र से कैलेंडर में भी जोड़ दिया जाएगा, जिससे यह कार्यक्रम निरंतर चलता रहे कभी रुके नहीं।राज्यमंत्री लोधी ने कहा ईश्वर की कृपा से संस्कृति मंत्रालय मुझे मिला है, तो निश्चित रूप से इस मंत्रालय के माध्यम से यह कार्यक्रम निरंतर चलता रहे, इसकी चिंता की जाएगी। अभी यह शुरुआत है आने वाले समय में जबेरा विधानसभा क्षेत्र में ऐसे दो से तीन महोत्सव संपन्न हो, बांदकपुर में भी महोत्सव संपन्न हो, इसकी व्यवस्था की जायेगी। इस अवसर पर मैं आप सभी का स्वागत करता हूं, वंदन करता हूं, अभिनंदन करता हूं।मध्य प्रदेश वेयरहाउसिंग लॉजिस्टिक एवं कॉरपोरेशन के पूर्व अध्यक्ष राहुल सिंह लोधी ने कहा नोहटा महोत्सव को संस्कृति विभाग के कलेण्डर में शामिल कर लिया जाये, ताकि यह आयोजन लगातार हर वर्ष चलता रहे। इस दौरान उन्होंने संस्कृति मंत्री श्री धर्मेन्द्र सिंह लोधी से बांदकपुर में भी महोत्सव शुरू करने के लिये आग्रह किया। आज स्थानीय प्रस्तुतियों में बधाई लोक नृत्य उमेश कुमार नामदेव, बुंदेली गायन उर्मिला पांडे छतरपुर तथा महादेव लीला नाट्य प्रस्तुति शिरीष राजपुरोहित उज्जैन द्वारा दी गई। साथ ही स्थानीय कलाकारों और अनहत कला केन्द्र के कलाकारों ने भी मनमोहक प्रस्तुतियां दी।

इस अवसर पर भाव सिंह मासाब, कलेक्टर मयंक अग्रवाल, पुलिस अधीक्षक सुनील तिवारी, एसडीएम ब्रजेश सिंह, सतेंद्र सिंह लोधी, सत्यपाल सिंह, राजेश सिंघई, भारत सिंह, शीतल राय, गोविंद यादव, सचिन जैन, पं. दीपक उपाध्याय, रूपेश सेन, अनुज बाजपेई, कमलचंद्र सिंघई, नर्मदा प्रसाद राय, राजा भैया सिंह, हाकम सिंह, पुरुषोत्तम दुबे, घनश्याम सिंह, उमराव सिंह, गोपाल सिंह, निजाम सिंह, इंद्रजीत सिंह, देवेंद्र सिंह, उनमान सिंह, जिनेश जैन भूपेश गंधर्व एवं हेमराज सिंह उपस्थित रहे। इस दौरान मंच का संचालन डॉ आलोक सोनवलकर तथा राजीव आयची ने किया।

पर्व के पहले दिन स्थानीय प्रस्तुति अंतर्गत अनहद कला द्वारा सरस्वती वंदना, कुसमी छात्रावास जबेरा द्वारा स्वागत गीत, सुश्री उर्मिला पांडे एवं साथी, छतरपुर द्वारा बुंदेली लोक गायन, श्री उमेश कुमार नामदेव एवं साथी, सागर द्वारा बधाई नृत्य एवं श्री शिरीष राजपुरोहित, उज्जैन द्वारा महादेव लीला नाटक की प्रस्तुति दी गई

कार्यक्रम में सुश्री उर्मिला पांडेय एवं साथी, सागर ने देवी गीत -सुआ बोले आम की डार माई मलयागिर में…, टीका की गाड़ी गीत – अरी ऐरी भोलानाथ बरात सजी है, ब्रम्हा विष्णु आये…, ब्याहन आए हिमाचल दोर कि दूल्हा शिवशंकर बने…, मोरी काए गौरा… महादेव बाबा बड़े रसिया रे…, जैसे कई बुंदेली गीत की प्रस्तुति दी।अगले क्रम में श्री उमेश कुमार नामदेव एवं साथी, सागर द्वारा बधाई नृत्य की प्रस्तुति दी। बुन्देलखण्ड अंचल में जन्म विवाह और तीज-त्योहारों पर बधाई नृत्य किया जाता है। मनौती पूरी हो जाने पर देवी-देवताओं के द्वार पर बधाई नृत्य होता है। इस नृत्य में स्त्रियां और पुरुष दोनों ही उमंग से भरकर नृत्य करते हैं। बूढ़ी स्त्रियाँ कुटुम्ब में नाती-पोतों के जन्म पर अपने वंश की वृद्घि के हर्ष से भरकर घर के आंगन में बधाई नाचने लगते हैं। नेग-न्यौछावर बांटती हैं। मंच पर जब बधाई नृत्य समूह के रूप में प्रस्तुत होता है, तो इसमें गीत भी गाये जाते हैं। बधाई के नर्तक, चेहरे के उल्लास, पद संचालन, देह की लचक और रंगारंग वेश-भूषा से दर्शकों का मन मोह लेते हैं। इस नृत्य में ढपला, टिमकी, रमतूला और बांसुरी आदि वाद्य प्रयुक्त होते हैं।सांस्कृतिक संध्या में प्रथम दिन की समापन प्रस्तुति में महादेव लीला नाट्य की प्रस्तुति हुई। लीला का आलेख श्री भगवती लाल राजपुरोहित-उज्जैन द्वारा किया गया है। वहीं लीला के कलाकारों ने त्रिपुरासुर वध, समुद्र मंथन, शिव विवाह, गंगा अवतरण दृश्यों को पिरोया। महादेव लीला नृत्य-नाट्य के माध्यम से बताया कि वास्तविक लीलाधर महादेव ही हैं। तुलसी के मानस को देखते हैं, तो सबसे पहले कथावाचक महादेव ही हैं, जो मां भगवती को श्रीराम के आख्यान को सुना रहे हैं। समस्त लीलाओं के जनक, विष्णु के उपासक व सभी अवतारों में जब भगवान विष्णु आते हैं, तो भगवान शिव अलग- अलग भूमिकाओं में उन अवतारों के साथ संबंद्ध हैं। शिव संहार के अधिपति के रूप में लोक पूज्य और लोक मान्य हैं। समझने की बात यह भी है कि, जो संहार का अधिपति है, जो महाकाल हैं वही जीवन का कारक भी हैं। यही कारण है कि हमारी सनातन परंपरा में जल (जो जीवन का प्रतीक) उन्हें ही अर्पित होता है। संहार के देवता को प्रसन्न करने के लिय़े आपको अपने जीवन को अर्पित करना है। इसी भावना से कृत्य की परिकल्पना में भगवान शिव एक अकेले देवता हैं, जिन्हें जलाभिषेक किया जाता है। ऐसे भगवान शिव महालीलाधर की लीला को, य़हां अलग-अलग तरीकों से अभिव्यक्त करने के प्रयत्न किये गये हैं। जब भी इस सृष्टि के विस्तार के लिये जीवन की जरूरत हुई है, तो भगवान शिव ही अकेले ऐसे देवता हैं जो हर समय में अपने आप को उपस्थित करते हैं। मसलन समुद्र मंथन का आख्यान घटित किया जाता है और जैसे ही हलाहल विष समुद्र मंथन से प्रकट होता है, तो उसके पान करने के लिये भगवान शिव का ही स्मरण किया जाता है। अगर वे पान नहीं करते तो इस सृष्टि की कल्पना असंभव है। तो ऐसे लीला पुरूष की लीला को सनातन परंपरा के अलग-अलग आख्यानों में, जो महिमा दी गई है उस महिमा को इस लीला में बुनकर प्रस्तुत करने का प्रयत्न है। संस्कृति विभाग का यह प्रयत्न पहली बार है जब भगवान विष्णु से इतर भगवान शिव की लीला की परिकल्पना करके उसे इस रूप में परणित करने का प्रयत्न किया है। प्राय़ः हम सदियों से सारे लोग भगवान विष्णु के अवतारों की लीला का ही अवगाहन करते रहे हैं। भगवान शिव की लीला अलक्षित सी रही है, तो ऐसे सर्वप्रिय जो लोक देवता हैं, ऐसे लोक देवता की अलग-अलग कथाओं को बुनकर शिवलीला तैयार कराई गई है।

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