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DAMOH

भगवान श्रीकृष्ण ने एक सौ एक फणों के भयंकर विषेले कालीनाग सर्प को मात्र तीन वर्ष की आयु मे यमुना से बाहर निकाला था – आचार्य पंडित रवि शास्त्री महाराज

जिला ब्यूरो राहुल गुप्ता दमोह

दमोह- ग्राम अहरोरा में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के छटवे दिवस मे कथा वाचक आचार्य पंडित रवि शास्त्री महाराज ने कहा कि जब भगवान मात्र तीन वर्ष के थे तब उन्होने भयंकर जहरीले कालीनाग को यमुना के बाहर निकाला था एक दिन कृष्ण यमुना के तट पर गए तो गायें भी बेहोश हो गई और ग्वाल बाल भी मूर्छित हो गए। क्योंकि यमुना का जल विषैला हो गया था। उस यमुना में काली नाग रहता था। भगवान ने कहा की मैं इस काली को नाथुंगा। और यमुना जी को बचाऊंगा। एक दिन बलराम जी का जन्मदिन था और अकेले ग्वाल बालों के साथ भगवान कृष्ण ही गऊ चराने आये हैं। श्रीदामा गेंद के साथ खेलने लगे। जब खेल रहे थे तो कृष्ण जी ने जान बुझ कर यमुना में गेंद फेंक दी है श्रीदामा जी बोले कन्हैया मेरी गेंद मुझे लेकर दे। कृष्ण बोले की भैया घर चल में तुझे मैया से दूसरी गेंद बनवाकर दे दूंगा। लेकिन श्रीदामा जी मचल गए और रोने लगे की नही कन्हैया मुझे मेरी गेंद ही चाहिए।कृष्ण बोले ठीक है भैया तू रो मत अभी लेकर देता हूँ। भगवान श्री कृष्ण जी कदम्ब के पेड़ पर चढ़ गए। और यमुना में कूदने लगे तो सभी ग्वाल बाल हल्ला करने लगे की तू मत कूद कन्हैया इसमें बहुत बड़ा काली नाग रहता है। लेकिन भगवान ने छलांग लगा दी।और सीधे पहुंच गए जहाँ काली निवास करता है। उस समय काली नाग सो रहा है। और नागिन जाग रही थी। जब उन्होंने भगवान को देखा तो मन्त्र मुग्ध हो गई और नागिन कहती है कौन दिशा ते आयो रे बालक कौन तुम्हारो नाम है नागिन भगवान से पूछती है अरे लाला तू कौन है कहाँ से आया है और तेरे माता पिता कौन है भगवान बोले पूरब दिशा दे आयो रे नागिन कृष्ण हमारो नाम है। माता यशोदा और पिता नन्द जू गोकुल हमारो गाम है। भगवान कहते है नागिन में पूर्व दिशा से आया हूँ। कृष्ण मेरा नाम है। माँ यशोदा और पिता नन्द जी है।क्या आप रास्ता भूल गए। क्या किसी बेरी ने तुम्हारे कान भर दिए और तुम्हे गुस्सा आ गया। या अपनी पत्नी से लड़ाई करके यमुना में कूदे हो भगवान बोले नागिन न तो मैं रास्ता भुला हूँ न ही डगर और न मेरी अपनी पत्नी से घर में लड़ाई हुई है। और मुझे गुस्सा भी नही है और किसी बेरी ने मेरी कान भी नही भरे हैं नागिन कहती है फिर बालक तुम यमुना में क्यो कूंदे नागिन कहती हैं हम चोरी से अपने नाग से छिपकर आपको गलहार माला और सवा लाख की बोरियां देती हूँ। आप अपने घर ले जाओ। भगवान बोले की हमें चोरी का माल नहीं चाहिए भगवान बोले की नागिन मुझे चोरी की चीज नही चाहिए। मालूम है मैं यहाँ क्यों आया हूँ देख मेरी माँ यशोदा जब दधि मंथन करेगी तो मेरी माँ को डोरी की आवश्यकता पड़ेगी नागिन बोली की हम इसे कितने स्नेह कर रही है और ये हमारे पति अपमान कर रहा है। हम इसे कितना स्नेह दे रही हैं। लेकिन ये मान नही रहा और उन्हें क्रोध आ गया और अपने पति को जगाने लगी की एकदम फुंकार मार कर नाग उठ गया और भगवान के चारों और लिपट गया। एक क्षण को तो भगवान को मूर्छा आ गई लीला में। काली ने लपेटे में भगवान को लिया। जब प्रभु को चेत आया तो अपने शरीर को फुलाना शुरू किया और काली की नस नस चटकने लगी। और काली का बंधन ढीला हो गया।जब काली का बंधन ढीला हुआ तो उसी समय भगवान उसके लपेटे से बाहर निकले और एक छोटी सी छलांग यमुना में लगाई और झट प्रभु काली के फन पर चढ़ गए। जिस फन से काली फुंकार मार रहे हैं। भगवान अपना चरण उठाकर काली के मस्तक पर प्रहार कर रहे हैं। उसकी नाक से आँख से रक्त बहने लगा। रक्त की बून्द भगवान के चरणों में पड़ी हैं। शुकदेव जी महाराज कहते हैं की परीक्षित ऐसा लग रहा हैं जैसे कोई भक्त नीले चरणों में लाल पुष्प चढ़ा रहा हैं। कितना सुंदर भगवान के चरण सुशोभित हो रहे हैं। जब नागिनों ने देखा तो घबरा गई और अपने बच्चो को लेकर भगवान के चरणों में प्रणाम करने लगी। प्रभु आप क्षमा कीजिये हमें क्षमा कीजिये। और हम आज ये बात समझ गई हैं। आपकी दृष्टि में शत्रु और पुत्र में कोई भेद नही हैं। नागिन कहती हैं प्रभु आपकी दृष्टि में कोई भेद नहीं हैं। आपकी दृष्टि में क्षमता हैं। पर आप जानते हैं हमारा पति काली हैं।बिना पति के पत्नी का जीवन बहुत कठिन हो जाता हैं। हम आपके चरणों में बार बार प्रणाम करती हैं। जब नागिन ने बार बार प्रार्थना की तो भगवान ने अपना लीला क्रोध कम किया और कालिया नाग भी बोलने लगा। जिसका पूरा मस्तक रक्त से भरा हुआ हैं। काली कहता हैं प्रभु हम तो जाति से ही दुष्ट हैं खल हैं। कितना भी हमको दूध पिलाओ फिर भी विष ही उगलेंगे। लेकिन हमें भी तो आपने ही बनाया हैं ना।

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