परम पूज्य गणाचार्य श्री 108 विराग सागर जी महामुनिराज ने शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में भव्यजनों को संबोधित करते हुए कहा कि सत्य हमेशा स्थाई रहता है सत्य में परिवर्तन नहीं होता परंतु सत्य को समझने का तरीका अलग होता है सत्य को बोलने का तरीका भी अलग हो सकता है पर सत्य हमेशा सत्य ही रहता है कोई जल को पानी कहता है कोई पाणी कहता है ।कोई नीर कहता है लेकिन जल तो जल हीं रहता है। लेकिन जल परिवर्तन नहीं मात्र कहने का तरीका सभी का अलग-अलग होता है। किसी व्यक्ति ने पूज्य श्री से पूछा की भगवन जैन धर्म के शास्त्रों का सार क्या है,_ तो पूज्यश्री ने बड़े ही संक्षेप में कहा कि हमारे आचार्यों में एक महान आचार्य पूज्य पाद स्वामी हुए उन्होंने जैन धर्म का सार यह बतलाया है कि जीव अन्य है और पुद्गगल अन्य है बाकी सब इसी का विस्तार है। यही तत्व का सार है। और जो जैसा कर्म करेगा वह कर्म उस प्राणी के साथ-साथ अन्य भवों मैं जाता हूं अच्छे कर्म का फल अच्छा तथा बुरे कर्मों का फल बुरा प्राप्त होता है इसलिए हमें हमेशा अच्छे कर्मों का निरंतर कर्म करते रहना चाहिए। इसी पावन पुनीत अवसर पर पूज्य आचार्य श्री 108 विराग सागर जी महाराज का पाद प्रक्षालन श्रीमान प्रतिष्ठाचार्य अरविंद शास्त्री दिल्ली ने प्राप्त किया। शास्त्र भेंट का अवसर श्रीमान सुरेश चंद जी आगरा वालों को प्राप्त हुआ तथा दीप प्रज्वलन श्रीमान अजय श्री जैन भिंड, विपिन चौधरी राजेंद्र बडडे, ऋषभ बडडे, आदि समाज के लोगों ने किया तथा मंगलाचरण का अवसर बहन खुशी जैन को प्राप्त हुआ। पूज्य आचार्य श्री की आहारचर्या कराने का सौभाग्य ऋषभ सिंघई वड्डे परिवार को प्राप्त हुआ।