संवादाता आनंद राठौर बड़वाह
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा के तट पर महादेव के निराकार रूप में है। मान्यता है कि यहां भगवान भोलेनाथ स्वयं विराजमान हैं। आज हम यहां बता रहे हैं इतिहास और पौराणिक महत्व के बारे में..12 ज्योतिर्लिंग में से एक ज्योतिर्लिंग है, जिसे ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। 14 जुलाई 2022 गुरुवार से श्रावण (सावन) का महीना शुरू हुआ है। इस महीने में भगवान शिव के भक्त उनकी पूजा में डूबे रहते हैं। इस महीने में देश के 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ती है। इन 12 में से एक ज्योतिर्लिंग है, जिसे ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। कोरोना संकट के बाद इस साल बाबा बिना किसी रोक-टोक के भक्तों को दर्शन दें रहे है।. हर साल सावन में ओमकारेश्वर ट्रस्ट मंदिर की तैयारियों में जुटा रहता है।
सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला में ओम की आकृति ओंकारेश्वर तीर्थक्षेत्र पवित्र नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। यहां सतपुड़ा पर्वत श्रंखलाओं में ओम की आकृति बनी है और इस ओम के मध्य में भगवान भोलेनाथ का निराकार शिवलिंग स्थापित है। पवित्र नर्मदा नदी में स्नान करने के बाद भक्त इस जल से भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करते हैं। शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि नर्मदा नदी भगवान भोलेनाथ के नथुनों से निकली है, इसलिए उनके दर्शन मात्र से पाप कर्मों से मुक्ति मिल जाती है। 12 ज्योतिर्लिंगों में ओमकारेश्वर ही एक ऐसा पर्वत है जहां पर भोलेनाथ की परिक्रमा की जाती है। यह परिक्रमा मार्ग ओम आकृति में है। यह गरीबन तीन कोस की परिक्रमा होती है। रास्ते में संगम कावेरी नदी पर स्नान किया जाता है। वही ऋण मुक्तेश्वर महादेव मंदिर है यहां पर ऐसी मान्यता है कि ऋण मुक्तेश्वर के दर्शन कर भोलेनाथ के शिवलिंग पर चने की दाल चढ़ाने से ऋण उतर जाता है। आगे परिक्रमा मार्ग में मामा भांजे का शिवलिंग है। सगे मामा भांजे अगर दोनों हाथ मिलाते है तो उनके हाथ मिल जाते हैं। परिक्रमा मार्ग में ऐसे पुरातत्व की बहुत ही अद्भुत चीजें देखने को मिलती है।
राजा मांधाता की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने दिया वरदान पुराणों के अनुसार ओंकारेश्वर महादेव स्वयंभू हैं, जो ऊँ या ऊँ के आकार में एक पर्वत पर विराजमान हैं। ऐसा माना जाता है कि राजा मान्धाता की तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उनसे दो वरदान मांगने को कहा। तब राजा मान्धाता ने कहा कि तुम इस पर्वत पर विराजमान हो और मेरा नाम भी तुम्हारे साथ सदा के लिए जुड़ जाए। तभी से भगवान भोलेनाथ स्वयं ओंकार पर्वत के गर्भ में निराकार हो गए और इस क्षेत्र का नाम मांधाता पड़ा।
शयन आरती के बाद बिछाई जाती है चौपड़ ओंकारेश्वर मंदिर में तीन आरती होती है। सुबह 5:00 बजे, दोपहर 12:00 बजे और रात 8:30 बजे। रात्रि आरती को शयन आरती कहते हैं। इस आरती के बाद मंदिर के गर्भगृह में चांदी का झूला लगाया जाता है,और आज भी इस झूले पर चौपड़ बिछाई जाती है। ऐसा माना जाता है। कि भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती रात के समय इस मंदिर में आते हैं और चौपड़ खेलते हैं। इस परंपरा का पालन आज भी कई सालों से किया जा रहा है।
दोनों घाटों पर विराजमान भोलेनाथ यहां नर्मदा नदी के दोनों किनारों पर भोलेनाथ की स्थापना की गई है। एक तरफ ओंकारेश्वर महादेव हैं और दूसरी तरफ ममलेश्वर महादेव हैं। ममलेश्वर मंदिर में पार्थिव शिवलिंग की पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि पवित्र नदी की मिट्टी से बने एक छोटे से शिवलिंग की पूजा करने से भक्तों को भोलेनाथ की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
ममलेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने की थी आज भी मंदिर की व्यवस्था अहिल्याबाई होल्कर ट्रस्ट करती है। अहिल्याबाई ने ही यहां मिट्टी के शिवलिंग की पूजा करने की परंपरा शुरू की थी। कहा जाता है कि इस परंपरा को शुरू करने की प्रेरणा उन्हें रामेश्वर में भगवान राम द्वारा मिट्टी से बने पार्थिव शिवलिंग से मिली थी।
सावन माह में प्रति सोमवार को निकलती है शाही सवारी सावन के महीने में हर सोमवार को भगवान ओंकारेश्वर और ममलेश्वर की शाही सवारी निकलती है और यह सवारी शहर का चक्कर लगाती है। दोनों मंदिरों से, भगवान के भक्त भगवान को सुशोभित करते हैं और नर्मदा नदी के बीच में नाव से उनका परिचय कराते हैं।
फिर दोनों सवार शहर के भ्रमण पर निकल जाते हैं। अबीर गुलाल ढोल की थाप पर नाचते हुए, इस शाही सवारी को शहर का दौरा करने के बाद उनके संबंधित मंदिरों में ले जाया जाता है।
कैसे पहुंचें ओंकारेश्वर ओंकारेश्वर तक रेल और बस द्वारा पहुंचा जा सकता है। रेल सेवा खंडवा और इंदौर तक है। यहां से बस द्वारा ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग पहुंचा जा सकता है। पहले यहां मीटर गेज रेल सेवा थी, लेकिन ब्रॉड गेज में बदलाव के कारण यह रेल सेवा फिलहाल बंद है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग खंडवा और इंदौर के बीच स्थित है। यहां की दूरी दोनों तरफ से 80 किलोमीटर है। यहां ठहरने के लिए कई होटल और धर्मशालाएं हैं।