सुदर्शन टुडे ब्यूरो रिपोर्ट जितेन्द्र साहू कानपुर
Mother’s Day 2022: दुनिया के तमाम रिश्तों में सबसे गहरा और अटूट रिश्ता होता है एक मां का उसके बच्चे के साथ, क्योंकि बाकी सभी रिश्ते दुनिया में आने के बाद बनते हैं, पर मां के साथ रिश्ता गर्भ में ही बन जाता है। इस रिश्ते को लेकर पूरी दुनिया में अलग-अलग तरीकों से अलग-अलग दिन मदर्स डे मनाया जाता है।
Mother’s Day 2022: मां बच्चे का रिश्ता इतना खास होता है कि वह किसी दिन का मोहताज नहीं होता है। फिर भी पूरी दुनिया में साल का एक दिन मां के नाम समर्पित होता है। मदर्स डे की शुरुआत एन मारिया रीव्स जार्विस के द्वारा मदर्स डे वर्क क्लब बना कर की गई। इस क्लब का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को बच्चों की देखभाल करना सिखाना था। इसके कई साल बाद एन मारिया की बेटी एना जार्विस के मन में ख्याल आया कि इस दुनिया के सबसे अटूट रिश्ते को मनाने के लिए एक खास दिन होना चाहिए और यही से मदर्स डे की शुरुआत हुई।
इसके बाद धीरे-धीरे पूरी दुनिया में मदर्स डे मनाने का प्रचलन तेज हो गया, लेकिन आपको बता दे कि पूरी दुनिया में मदर्स डे एक ही दिन नहीं मनाया जाता है।
मदर्स डे पूरी दुनिया में अलग-अलग कारणों से अलग-अलग दिन मनाया जाता है।
अलग-अलग देशों में अलग-अलग दिन मनाया जाता है मदर्स डे
मदर्स डे दुनिया भर में अलग-अलग दिन मनाया जाता है। भारत सहित ऑस्ट्रेलिया, डेनमार्क, फिनलैंड, इटली, स्विट्जरलैंड, तुर्की और बेल्जियम में मई महीने के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है। इस साल मदर्स डे 8 मई को है।मेक्सिको और लैटिन अमरीका के ज्यादातर हिस्सों में मदर्स डे 10 मई को मनाया जाता है। वहीं रोमानिया,लिथुआनिया, हंगरी जैसे देशों में मई के पहले दिन मदर्स डे मनाया जाता है। इसके साथ ही नॉर्वे में मदर्स डे फरवरी के दूसरे रविवार को मनाया जाता है। जॉर्जिया इसे 3 मार्च को मनाता है। इंडोनेशिया में 22 दिसंबर तो रूस में नवंबर के आखिरी रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है।
मदर्स डे की शुरुआत करने वाली ही हो गई इसके खिलाफ
एना जार्विस ने जब पहली बार मदर्स डे मनाया तो उन्होंने मां के पसंद के सफेद कार्नेशन फूल को महिलाओं में बाटा जो धीरे-धीरे चलन में आ गया। हर कोई मदर्स डे पर इन फूलों को खरीदने लगा जिसके बाद इन फूलों का व्यवसाय इतनी तेजी से बढ़ा कि मदर्स डे पर सफेद कार्नेशन फूलों की कालाबाजारी तक होने लगी। लोग ज्यादा से ज्यादा पैसे देकर इसे खरीदने लगे, जिसे देख कर एना को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने इस दिन को न मनाने की मुहिम शुरु कर दी थी। उनका कहना था कि लोग अपने लालच के चलते बाजारीकरण करके इस दिन की अहमियत को घटा रहे हैं। साल 1920 में उन्होंने लोगों से फूल न खरीदने की अपील भी की लेकिन कुछ खास सफलता हाथ नहीं लगी और 1948 में इसी मुहिम को आगे बढ़ाते हुए एना इस दुनिया से चली गई।