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यहां रोज होता है कुत्तों का भंडारा: नावघाट खेड़ी के अवधूत टाटम्बरी आश्रम में आरती सुनते ही दौड़े चले आते हैं श्वान, फिर लेते हैं दूध रोटी का मजा

सुदर्शन टुडे न्यूज़ ब्यूरो चीफ खरगोन

खरगोन जिले के सनावद. नर्मदा के उत्तर तट पर बसे सनावद-बड़वाह का नावघाटखेड़ी क्षेत्र यहां के आध्यात्मिक स्थलों, आश्रमों वसंत महात्माओं के लिए विख्यात है। इन आश्रमों में आए दिन होने वाले भंडारों में हजारों की संख्या में संत, परिक्रमावासी व आम नागरिक प्रसादी ग्रहण करते है। पर इन आश्रमों में कुछ आश्रम ऐसे भी है जहां केवल मूक जानवर कुत्तों के लिए भंडारे का आयोजन होता है। जो कई वर्षों से लगातार जारी है। बड़वाह से करीब चार किमी दूर मेहताखेड़ी क्षेत्र में अवधूत श्री 1008 टाटम्बरी सरकार में आश्रम में यह नजारा प्रतिदिन शाम को देखने को मिलता है| मां नर्मदा तट पर स्थित सिद्ध अवधुत संत टाटम्बरी सरकार के आश्रम पर नए वर्ष पर दर्शन के लिए सांसद समन्वयक रमेश जी बिरला,गुरूदयाल सेजगाया, रविंद्र बिरला, विजेंद्र सेजगाया सहित बड़ी संख्या मे श्रद्धालु पहुंचे उन्होंने गुरु की चरण वंदना की और आशीर्वाद भी प्राप्त किया है उन्होंने साधु संतों के सानिध्य में रहकर ज्ञान की प्राप्ति की। काली धाम के दर्शन भी किए। सिद्ध अवधूत संत टाटम्बरी सरकार ने बताया कि हिन्दू धर्म में सबसे जागृत देवी हैं मां कालिका मां ज़ो बड़वाह मे दक्षिण मुखी काली मंदिर है दस मस्तक वाली माता है। पुरी दुनिया मे दश भुजा वाली माता तो मिलेगी। लेकिन मां काली की दस विद्या मतलब 10 मस्तक वाली माता मेहताखेड़ी क्षेत्र में अवधूत श्री 1008 टाटम्बरी सरकार में आश्रम में पर ही देखने को मिलेगी। मां काली के दस मुख है इसमें तारा है बगलामुखी है असम बंगाल मे अलग अलग रुप मे मंदिर है उनका एक एक रूप है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह अद्भुत है,नर्मदा के दक्षिण छोर पर स्थित कालीघाट की मां काली की अलौकिकता और उनके प्रति आस्था व विश्वास से लबरेज है।
आरती के स्वर सुनते ही दौड़ लगाता है कुत्तों का झुंड
शाम होते ही जैसे ही आरती के स्वर और वाद्य यंत्रों की ध्वनि आश्रम में गुंजित होती है। कुत्तों का काफिला दूर से ही दौड़ा चला आता है। एक के पीछे एक दौड़ लगाते ये कुत्ते आश्रम के गेट पर खड़े हो जाते है। आरती समाप्त होने के बाद भंडारा शुरु हो जाता है।स्वयं अवधूत श्री टाटम्बरी सरकार सहित उपस्थित भक्तगण भी कुत्तों को भंडारे में बनी दूध रोटी, मिठाई व अन्य पकवान देते है।41 वर्षों से दे रहे भंडारा
स्वयं बाबा के मुताबिक करीब 41 वर्षो से वे कुत्तों के लिए प्रतिदिन भंडारा करवा रहे है। उनकी अनुपस्थिति में सेवक ये कार्य करते है। शाम 5-7 बजे तक कुत्तों के लिए 5 किलो आटे के टिक्कड़(मोटी रोटी)प्रसाद बनाया जाता है, जो आश्रम के बाहर या कभी अंदर उनके नियत स्थान पर रख दिया जाता है। इस टिक्कड़ बनाने के लिए एक युवक को भी रखा गया है।इसके अलावा दूध भी कुत्तों को दिया जाता है, तो कभी दूध पूरी का भोग देते है। हर दिन 10-15 कुत्ते यहां आकर दूध-रोटी खाते है। टाटम्बरी सरकार कहना है की आदमी तो रोटी कही से भी जुटा लेता है, लेकिन इन मूक प्राणी का कोई सहारा नही होता है। इसलिए इन जीवों के प्रति सदा दया का भाव होना चाहिए।

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