भगवान शिव के जीवन से सीखें जिंदगी जीने के सूत्र
सुदर्शन टुडे ब्यूरो रिपोर्ट कानपुर आचार्य बजरंग प्रसाद तिवारी7309202950
भगवान शिव को संहार का देवता कहा जाता है। भगवान शिव सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से शिव को भिन्न माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदिस्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं।
शिव गुट निरपेक्ष हैं। सुर और असुर, देव और दानव दोनों का उनमें विश्वास है। राम और रावण दोनों उनके उपासक हैं। दोनों गुटों पर उनकी समान कृपा है। आपस में युद्ध से पहले दोनों पक्ष उन्हीं को पूजते हैं। लोक कल्याण के लिए वो हलाहल पीते हैं और डमरू बजाएं तो प्रलय होता है। शिव पहले पर्यावरण प्रेमी हैं। शिव पशुपति हैं। शिव ने बैल ‘नंदी’ को अपना वाहन बनाया, सांप ‘वासुकि’ को आश्रय दिया। जिसकों किसी ने गले नहीं लगाया, महादेव ने उन्हें गले लगाया।
शिव का व्यक्तित्व विशाल है। वो काल से परे है वो महाकाल हैं। सिर्फ भक्तों के नहीं देवताओं के भी संकटमोचक हैं। शिव का पक्ष सत्य का पक्ष है। एक लोटा भरे जल से प्रसन्न होने वाले देवता आपको कहां मिलेंगे। यहीं कारण है उत्तर में कैलाश से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम तक एक जैसे पूजे जाते हैं।
जिंदगी को किस नजरिए से जिया जाए कि नकारात्मकता के बीच हम सकारात्मकता का प्रतीक बनकर उभरें और हर रिश्ते में परफेक्ट साबित हों…
भगवान शिव को देवों के देव का कहा जाता है. महादेव का एक रूप ताडंव करते नटराज का है तो दूसरा रूप महान महायोगी का है. ये दोनों ही रूप रहस्यों से भरे हैं, लेकिन शिव को भोलेनाथ भी कहा जाता है. जहां एक साथ इतने सारे रंग हो फिर क्यों न अपनी जिंदगी में इन रंगों से प्रेरणा लें.
1. बुराई को खत्म करना
ब्रह्मा उत्पत्ति के लिए और विष्णु रचना के लिए और शिव को विनाश के लिए जाना जाता है. शिव का यह रूप आपको डराने वाला लग सकता है लेकिन किसी बुराई का खत्म होना बेहद जरूरी होता है. शिव इसी के लिए जाने जाते हैं.
2. शांत रहकर खुद पर नियंत्रण रखना
शिव से बड़ा कोई योगी नहीं हुआ. किसी परिस्थिति से खुद को दूर रखते हुए उस पर पकड़ रखना आसान नहीं होता है. महादेव एक बार ध्यान में बैठ जाएं तो दुनिया इधर से उधर हो जाए लेकिन उनका ध्यान कोई भंग नहीं कर सकता है. शिव का यह ध्यान हमें जीवन की चीजों पर नियंत्रण रखना सिखाती है.
3. नकारात्मक चीजों को भी सकारात्मक होकर लेना
समुद्रमंथन से जब विष बाहर आया तो सभी ने कदम पीछे खींच लिए थे क्योंकि विष कोई नहीं पी सकता था. ऐसे में महादेव ने स्वयं विष (हलाहल) पिया और उन्हें नीलकंठ नाम दिया गया. इस घटना से बहुत बड़ा सबक मिलता है कि हम भी जीवन में आने वाली चीजों को अपने अंदर रख लें लेकिन उसका असर न खुद पर हावी होने दें अौर न ही दूसरों पर.
4. जीवनसाथी के प्रति सम्मान
शिव का यह रूप जगजाहिर है. हिंदू मान्यताओं के हिसाब से परफेक्ट पार्टनर महादेव को ही माना जाता है. अगर पार्वती ने उन्हें मनाने के लिए सालों की तपस्या की तो दूसरी ओर शिव ने उन्हें अर्धांगिनी बनाया. तभी तो 33 कोटि देवताओं में शिव को ही अर्धनारीश्वर कहा जाता है.प्रत्येक मंदिर में किसी भी देवता या भगवान का परिवार नहीं होता केवल “शिव परिवार “ही होता है.
सावन में भगवान शिव के साथ उनके परिवार की पूजा का भी विशेष महत्व है। आमतौर पर लोगों को पता है कि भोलेनाथ के परिवार में दो पुत्र हैं – कार्तिकेय और गणेश। कम ही लोगों को ज्ञात है कि भगवान शिव की 2 नहीं बल्कि 6 संतानें हैं। इनमें तीन पुत्र हैं और 3 पुत्रियां भी हैं। शिव जी की पुत्रियों के बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते हैं लेकिन पुराणों में कई जगह उनका उल्लेख होता है। शिव की संतानों का वर्णन शिव पुराण में मिलता है। भगवान शिव के तीसरे पुत्र का नाम भगवान अयप्पा है और दक्षिण भारत में इनको पूरी श्रद्धा के साथ पूजा जाता है।
शिव की तीनों पुत्रियों के नाम हैं – अशोक सुंदरी, ज्योति या मां ज्वालामुखी और देवी वासुकी या मनसा। हालांकि ये तीनों बहनें अपने भाइयों के समान प्रचलित नहीं रहीं और इनका वर्णन कम जगह ही मिलता है लेकिन देश के कई हिस्सों में इनकी पूजा की जाती है।
5. हर समय समान भाव रखना
शिव का संपूर्ण रूप देखकर यह संदेश मिलता है कि हम जिन चीजों को अपने आस-पास देख भी नहीं सकते उसे उन्होंने बड़ी आसानी से अपनाया है. तभी तो उनकी शादी पर भूतों की मंडली पहुंची थी और शरीर में भभूत लगाए भोलेनाथ के गले में सांप लिपटा होता है. बुराई किसी में नहीं बस एक बार आपको उसे अपनाना होता है.
6. तीसरी आंख का खुलना
शिव को हमेशा त्रयंबक कहा गया है, क्योंकि उनकी एक तीसरी आंख है. तीसरी आंख का मतलब है कि बोध या अनुभव का एक दूसरा आयाम खुल गया है. दो आंखें सिर्फ भौतिक चीजों को देख सकती हैं. जो कि भीतर की ओर देख सकता है. इस बोध से आप जीवन को बिल्कुल अलग ढंग से देख सकते हैं. इसके बाद दुनिया में जितनी चीजों का अनुभव किया जा सकता है, उनका अनुभव हो सकता है. इसलिए बनी बनाई चीजों पर चलने से पहले खुद समझे-सोचें.
7. अपनी राह चुनना
शिव की जीवन शैली हो या उनका कोई अवतार. वे हर रूप में बिल्कुल अलग हैं. फिर वो रूप तांडव करते हुए नटराज हो, विष पीने वाले नीलकंठ , अर्धनारीश्वर, सबसे पहले प्रसन्न होने वाले भोलेनाथ का हो. वे हर रूप में जीवन को सही राह देते हैं.